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₹100-400 INR / hour

Imefungwa
Imechapishwa about 4 years ago

₹100-400 INR / hour

जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश को दिया नही दिखाया जा सकता जिस प्रकार ईश्वर को दिखाया, बताया, सुनाया, नही जा सकता उसी प्रकार किसी भी गुरुपद पर आसीन किसी भी ऊर्जा को बताया नही जा सकता। फिर भी यह धृष्टता साधकों की प्रेरणा एवं आध्यात्मिक कल्याण हेतु सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी के जीवन काल की संक्षिप्त सुगंध यहां बिखेरने का प्रयास कर रहे हैं सद्गुरुदेव अपराधों को क्षमा करें। सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी का सांसारिक नाम "मणि धस्माना" है ,देव भूमि ,पौड़ी गढ़वाल, ऊत्तराखण्ड के एक गांव के रहने वाले हैं,उनका जन्म मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश में हुआ जहां कई पीढ़ियों से इनके पूर्वज भगवान भैरव और माँ काली के सेवक रहें और तंत्र के क्षेत्र में अपना कर्म करते रहे इसी धारा को हमारे सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी पिछले कई वर्षों से साधकों को साधना में अग्रसर करने के लिए लगा ार प्रयासरत हैं।उनके पिता एक सरकारी विभाग में जिला कार्यक्रम अधिकारी पदासीन थे साथ ही तंत्र और साधना की गूढ़ जानकारी रखते थे।इनके स्व. दादा जी स्वयं में सिद्ध और ऊत्तराखण्ड के बहुत विख्यात तंत्र ज्ञाता थे और भगवान भैरव और मां काली की विशेष कृपा थी । उनके द्वारा कई लोगो का भला किया गया । सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी के परदादा जी के बारे में यह विख्यात है कि एक बार उनके ही किसी संगी साथी ने उपहास उड़ाने की मंशा से एक अनार का फल उनकी तरफ फेंका और कटाक्ष में कहा कि इतना बड़ा पंडित है तो बता कितने दाने हैं उन्होंने एक हाथ से एक क्षण में पकड़ के उसी त्वरित गति से फल वापस फेंकते हुए कहा कि तू दाने पूछता है देख खोल के इतने कच्चे,इतने पके और इतने भुसे हुए दाने हैं। यह महिमा है तंत्र की जो वास्तविक ज्ञाता होता है उसकी। हमे बड़ा सौभाग्य है कि हमे इस युग जहां चारो ओर छल कपट धोखा मंत्रों का फेसबुक और यूट्यूब पर धड़ल्ले से प्रचार प्रसार हो रहा है ,एक ओर शिव भगवती को गुरूपदासीन होते हुए कहते हैं कि हे देवी यह ज्ञान बहुत गुप्त है इसे अपनी योनि के समान छुपा के रखना आज उसी ज्ञान को बड़ी बेशर्मी भरे पापाचार युक्त कई भ्रष्ट इंटरनेट पर अपने छद्म अहम को पुष्ट करने में लगे हैं वहीं सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी इस ग प्त ज्ञान को पूरे विश्व में साधकों के पास जा जा कर दीक्षा संस्कार करा साधकों में सोई अलख जगा रहे हैं। सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी बाल्यकाल से मौन रहते ,संगी साथी आगे आगे चलते, ये मौन खोए हुए अज्ञात कही ताकते रहते हुए जैसे कोई गहन शांति को उपलब्ध जिसे बाहर से कोई लेना देना नही ऐसे ही सभी के संग रहते थे । अध्यापक ,सहपाठी शिकायत करते इनके पिता से की ,ये मिल जुल के नही रहते चुप रहते है खेलते भी नही बोलते भी नही,वो समझते थे क्योंकि वह स्वयं एक सिद्ध थे और मौन उनकी प्रकृति थी ।जैसे बीज को देख के वृक्ष की क्षमता का पता सिर्फ जानकार लगा पाता है बाकी उसे फेंक देते हैं उसी प्रकार उनके संग और सभी साधकों के संग होता है। उनकी यात्रा वह 8वीं कक्षा से हुई ,जब उन्होंने सहसा ही अपने पूर्वजों की पुरानी तंत्र और ज्योतिषीय किताबों का अध्ययन करना शुरू किया और जैसा बताया गया और जितना उस उम्र में समझ आया, करते गए धीरे धीरे अग्नि प्रज्ज्वलित होती चली गई और सामाजिक अध्धयन के संग साधक उठ चला था भीतर । धीरे धीरे ज्योतिष संबंधित सभी ग्रंथो का उन्हीने सूक्ष्म से सूक्ष्म अध्यन किया जिसमें भृगु संहिता, सूर्य सिद्धान्त, लघु पाराशरी, जातक पारिजात, ब्रह्जातकम, नाड़ी ज्योतिष ,केरल जोतिष, ज्योतिष रत्नाकर,भवन भास्कर, मुहूर्त चिंतामणि, अंक शास्त्र, रमल, प्रश्न कुंडली ,होरा , समुद्र शास्त्र, फलदीपिका इत्यादि ढेर सारी अन्य दुर्लभ पुस्तकों को वो अपने ज्ञान की प्यास के मार्ग में भीतर उतारते चल गए। बाल्यकाल से ही उन्होंने गायत्री की उपासना प्रारंभ कर दी थी साथ ही ध्यान के कई सूत्रों पर कार्य करना शुरू कर दिया था जिसमें उनके संग अनुभव होना बाल्यकाल से ही शुरू हो गए ,जैसे किसी के मन की बात सहसा जान जाना ,कोई भी घटना होने से पहले उसका चित्रण कर देना दूर से ही सम्मोहित कर देना ,अज्ञात आत्माओं की उपस्थिति से इन्हें हर्ष होता। धीरे धीरे स्नातक की पढ़ाई करते करते साधनाओं में लीन होते चले गए बाहर कोई दिखावा नही ,बाहर से कोई नही बता सकता कि यह क्या कर रहे हैं । मौन में रहने को गुरुदेव सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं साधक की । धीरे धीरे सांसारिक अच्छे बुरे अनुभवों के संग वो बढ़ते रहे गायत्री से ले के भगवान भैरव की साधनाओं को सम्पूर्ण करने के पश्चात MBA की डिग्री,O लेवल- B लेवल कंप्यूटर डिप्लोमा, वेब डिजाइनिंग, प्रोग्रामिंग एवं Digital Marketing Diploma करने के साथ साथ पहाड़ो , जंगलों ,आश्रमों ,साधुओं, शमशान, कब्रिस्तान,भैरव गढ़ी, भैरव टेकड़ी, नदी किनारे , बद्रीनाथ, केदारनाथ,गंगोत्री-गौमुख,कामाख्या-गुवाहाटी, तारापीठ-रामपुरहाट,बंग ाल, उज्जैन काल भैरव नदी तट, देवास, शमशान,हरिद्वार, ऋषिकेश,धर्मशाला- मैक्लॉड गंज,नैनीताल,माउंट आबू, इत्यादि सभी गुप्त गुफाओं में जा जा के अपनी अलग अलग काल के गुरुओं संग संपर्क करके अपनी साधनाओं को आगे बढ़ाते रहे, साथ ही वेद, उपनिषद, दर्शन, मनोविज्ञान, कुरान, बाइबल इत्यादि सभी ग्रंथो और पुस्तकों का अध्ययन करते करते उसमें छुपे गूढ़ को समझते गए, क्योंकि यात्रा में थे तो जांचते परखते रहने का ल भ भी मिलता था। उन ध्यान विधियों में से कई ध्यान की विधियां जो सबके समक्ष उपलब्ध नही अब । सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी ने बहुत से गुरुओं का सानिध्य लिया जिसमें कई अत्यधिक खराब और बुरे जिनका आध्यात्म से दूर दूर तक लेना न् देना उनके संग और कुछ बहुत ही प्रिय बहुत सिद्ध जो समाज में है लेकिन किसी को कुछ नही बताते न् जताते, ऐसे ऐसे महान गुरुओं का संग भी रहा ,जिसमें सूफी ध्यानस्त गुरुओं, झेन के गुरुओं,बुद्ध की धारा के गुरुओं,अघोर गुरुओं, कापालिकों ,वैदिक ब्राह्मण गुरुओं, कॉल मार गी गुरुओं ,सुलेमानी तंत्र सिद्ध गुरुओं के संग रहने का लाभ मिला । एक घटना गुरुदेव बताते हैं कि एक बार भटकते हुए यात्राओं के दौरान एक सिद्ध बुरहानपुर में सूफी फकीर का संग अपने यात्राओं के संग मिला ,जैसे ही गुरुदेव उन सूफी फकीर के समक्ष उपस्थित हुए बहुत भीड़ थी उनके आस पास पीला चोगा पहने हुए खाट पर थे जैसे ही गुरुदेव को देखा उनके पास में रखी पीले रंग की माला पहना कर उनका सम्मान किया ऐसे में उनको लगा शायद फकीर से कोई गलती हो गई तो उतार के समझाने का प्रयास किया ,तो उन्होंने कहा प्रभु आप आये मेरे पास जन्मों की साधना सफल हो गई।गुरुदेव बाद में समझाते हैं कि उस सिद्ध फकीर ने वो देख लिया जो सामान्य नही देख पाता और उसने उसके लिए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति माला पहना कर करी।        जिस प्रकार से जानकार कोयले से कोयले का और हीरे से हीरे का कार्य लेता है उसी प्रकार गुरुदेव ने सभी के संग रह शुभ लिया अशुभ अनैतिक छोड़ दिया और आगे बढ़ते गए। साथ ही अपने सांसारिक जीवन में भी उन्होंने धनोपार्जन पर निर्भर रहने की अपेक्षा स्वयं से एक छोटी सी सैलरी से शुरू कर दैनिक जागरण ,दिल्ली प्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप , यू.के. की विख्यात मैगजीन के भारत में नेक्स्ट जेन इत्यादि कई मीडिया हाउसेज़ में मैनेजर के पद पर पूरी दिल्ली का कार्यभार संभालते हुए बीच बीच में सब छोड़ चले जाते रहे।उनको प्रारम्भ से ही पढ़ने का शौक था ,इसी भाव में वो उपलब्ध ग्रंथो,दार्शनिकों, मनोवैज्ञानिकों को पढ़ते रहे।यह सब होते हुए भी साधना के वास्तविक जीवन को भी जीते हुए कई कई दिन भोजन न् हो पाता सड़क पर भिक्षाटन करते पाए जाते जो की एक साधना ा ही भाग है।        गुरुदेव कहते हैं बार बार "सम्पूर्ण समर्पण ही एक मात्र कुंजी है" उसी यात्रा के मध्य कई ऐसे अनुभव हुए जिसमें वो अपने को इस अस्तित्व में डुबाते चले गए सभी की गालियां सहना ,उपहास सहना, मार भी दे कोई तो स्वीकार करना ,घर परिवार सब त्याग कर उस अग्नि में स्वयं को जला देना,कई कई घंटे ध्यान पूजन जाप में खो देना और बाहरी जगत से पूरा कट जाना। जितना बाहर उपहास और कष्ट मिलता वह और सहायक होता उनको बाहर के जगत की मिथ्यता सिद्ध करने में ,और बाहर कष्ट बढ़ जाता वो और भीतर सरक जाते , वह कहते हैं कि बाह्य कष्ट सदैव से साधक को भीतर की ओर यात्रा को सबल बनाने के लिए होता है और पराकाष्ठा इस वाक्य से समझाते हैं " कष्ट में आनंद है" ।   गुरुदेव का ध्यान व साधना का समय 10 से 15 घंटे हुआ करता था जिसमें जहां वो बैठते फिर वो उठते नही थे, दो चार दिवस ,न भूख ,न प्यास न होश । मात्र एक ही खोज स्व की इस परम की।        तंत्र की साधनाओं में शमशान से संबंधित षट कर्म( शांति , मारण, मोहन ,उच्चाटन, विद्वेषण, स्तंभन ) बेताल साधना वाराह , पीर , जिन्न , भूत ,प्रेत, यक्ष, अप्सरा , हनुमान , विष्णु, बगलामुखी, काली, तारा , छिन्नमस्ता , धूमावती, कमला इत्यादि सभी महाविद्याओं का साक्षात्कार , विशेषतः भगवान भैरव की सभी रूपों के साधनाओं शमशान भैरव ,क्रोध भैरव, बटुक भैरव, स्वर्णाकर्षण भैरव और गुरुदेव कहते हैं कुछ ऐसे गुप्त भै व अत्यंत भयंकर जिनके नाम लेते ही वो मारण को आतुर हो उठते हैं रुपों की उपासना जो पूर्वजों द्वारा प्राप्त हुई वो जिनके नाम लेने की अनुमति भी नही दी गई है । सद्गुरुदेव श्री तारामणि भाई जी का नामकरण भगवान श्री भैरव जी द्वारा सद्गुरुदेव श्री तारामणि भाई जी के नाम का भी एक रहस्य है । गुरुदेव शुरू में अपना नाम मणि भाई जी ही रख के आगे बढ़े उसके पीछे उनके भाव यह है कि वो कभी भी गुरु होते हुए तथाकथित गुरुओं के तरह अपने शिष्यों से दूरी बनाए रखने के पक्ष में नही, सदैव अपने साथ भाई जी लगाने के पीछे शिष्यों संग एक दम भ्रातृप्रेम रखने का संदेश देते हैं।इष्ट भगवान भैरव ने उन्हें प्रसन्न हो जब आगे बढ़के सभी साधकों के मार्गदर्शन हेतु आदेश दिया तो मणि की जगह श्री तारामणि पुकारा उ सी रात्रि एक तारा देवी के बहुत अच्छे उपासक का संदेश स्वतः प्राप्त हुआ और प्रथम संबोधन यही था "कैसे हैं श्री तारामणि भाई जी" । सद्गुरुदेव के जाग्रति की रात्रि एक शुभ रात्रि उस शुभ दिवस पौड़ी गढ़वाल, ऊत्तराखण्ड की गोद में एक गुप्त जगह जिस जंगल ऊत्तराखण्ड में अक्सर वो ध्यान करने जाते थे वह ध्यान विधि करते करते सदगुरुदेव श्री तारामणि भाई जी के प्राणों में व्याप्त जन्मों की प्रतीक्षा का अंत हुआ और भगवत्ता में लीन हुए । सभी रहस्य प्रकट हो गए ,सभी उत्तर मिल गए ,सारी प्यास बुझ गई ,यात्रा समाप्त हो गई। इस अवस्था को प्राप्त होने के पश्चात एक ही गूंज उठी चहु ओर इस ब्रह्म "अहम ब्रह्मास्मि" । प्रथम वाक्य जो उनसे आया "सब ठहर गया मैैंं बह गया"
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हाँ मैं इस काम को कर सकती हूँ। आप अपने काम का विवरण मेरे संदेश पेटी मे भेज दीजिए। मैं आपके संदेश का इंतिज़ार कर रही हूँ। धन्यवाद!!!!!
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IAM DO BEST TRANSLATE FROM HINDI TO ENGLISH A summary is a record in a reader's own words that gives the main points of a piece of writing such as a newspaper article, the chapter of a book, or even a whole book. It is also possible to summarize something that you have heard, such as a lecture, or something that you have seen and heard, such as a movie. A summary omits details, and does not include the reader's interpretation of the original. You may be used to reading English in order to answer questions set by someone else. In that case, you probably read the questions first and then read the passage in order to find the correct answer. However, when you read in order to write a summary, you must read in order to decide for yourself what the main points are. This involves reading to understand the message that the writer has for the reader, rather than reading in order to get the correct answer to someone else's questions. Since people have different backgrounds and read for different purposes, it is possible that different readers will interpret a writer's message in different ways. Even if they agree, they will probably write their summaries in different ways. In other words, there is unlikely to be only one "correct" summary. On the other hand, to write a summary it is necessary to understand a passage as a whole, and therefore at a deeper level, than when one's purpose is just to answer questions.
₹150 INR ndani ya siku 40
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Kuhusu mteja

Bedera ya INDIA
new delhi, India
5.0
1
Njia ya malipo imethibitishwa
Mwanachama tangu Feb 10, 2020

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